हमर उत्थान सेवा समिति ने उठाए कड़े सवाल, शिक्षक पर वसुली, अनुशानत्मक कार्रवाई की मांग
सूरजपुर। केंद्र सरकार द्वारा छोटे और सीमांत किसानों को आर्थिक संबल देने के उद्देश्य से शुरू की गई प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना आज कई जगहों पर पात्र किसानों की मदद कम और अपात्र शासकीय कर्मचारियों की कमाई का जरिया बनती जा रही है। योजनाओं की निगरानी और पारदर्शिता पर बड़े-बड़े दावे करने वाला सिस्टम उस समय कटघरे में आ जाता है, जब खुद शासन के भीतर बैठे कर्मचारी नियमों को ताक पर रखकर लाभ उठाते पाए जाते हैं। ऐसा ही एक गंभीर मामला सूरजपुर जिले के दूरस्थ क्षेत्र चांदनी बिहारपुर विकासखंड अंतर्गत ग्राम पंचायत अवन्तिकापुर से सामने आया है, जिसने प्रशासनिक निगरानी, विभागीय जिम्मेदारी और जवाबदेही पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार ग्राम पंचायत अवन्तिकापुर के शासकीय प्राथमिक पाठशाला, पठारी पारा में पदस्थ शिक्षक रामजी बैश्य, शिक्षक वर्ग-2 के पद पर शासकीय सेवा में रहते हुए प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का लाभ चोरी-छुपे लेते रहे। नियमों के अनुसार कोई भी शासकीय सेवक, चाहे वह शिक्षक हो या अन्य कर्मचारी, इस योजना का लाभ लेने का पात्र नहीं है। इसके बावजूद संबंधित शिक्षक द्वारा योजना के अंतर्गत अब तक 16 किस्तों का लाभ लिया जाना न केवल नियमों का खुला उल्लंघन है, बल्कि शासन के धन की सीधी लूट के समान है।
सबसे गंभीर सवाल यह है कि जब योजना की स्पष्ट गाइडलाइन में शासकीय सेवकों को अपात्र घोषित किया गया है, तब यह भुगतान कैसे हुआ। क्या आवेदन के समय गलत जानकारी दी गई, क्या सेवा में होने का तथ्य जानबूझकर छुपाया गया, या फिर सत्यापन करने वाली एजेंसियों ने आंख मूंदकर सब कुछ होने दिया। यदि एक शिक्षक इतने लंबे समय तक किस्त दर किस्त राशि लेता रहा और किसी स्तर पर आपत्ति दर्ज नहीं हुई, तो यह केवल व्यक्तिगत गड़बड़ी नहीं, बल्कि सिस्टम की सामूहिक विफलता है।
यह मामला सीधे-सीधे मॉनिटरिंग एजेंसी, कृषि विभाग, राजस्व अमले और योजना से जुड़े सत्यापन तंत्र की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। आखिर किसकी जिम्मेदारी थी यह सुनिश्चित करने की कि लाभार्थी शासकीय सेवक नहीं है। यदि विभागीय रिकॉर्ड, सेवा पुस्तिका और आधार-लिंकिंग के बावजूद भी अपात्र व्यक्ति को भुगतान होता रहा, तो स्पष्ट है कि निगरानी सिर्फ कागजों तक सीमित है।
हमर उत्थान सेवा समिति की तीखी प्रतिक्रिया
इस मामले पर हमर उत्थान सेवा समिति के अध्यक्ष चंद्र प्रकाश साहू ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि यह सिर्फ एक शिक्षक का मामला नहीं, बल्कि शासन की योजनाओं के साथ सुनियोजित खिलवाड़ है। उन्होंने कहा कि गरीब और वास्तविक किसानों के नाम पर जारी की जाने वाली राशि यदि शासकीय कर्मचारी हड़प रहे हैं, तो यह सामाजिक अपराध के साथ-साथ प्रशासनिक लापरवाही का भी प्रमाण है। समिति ने स्पष्ट शब्दों में मांग की है कि संबंधित शिक्षक से संपूर्ण राशि की तत्काल वसूली की जाए और उनके विरुद्ध कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई सुनिश्चित की जाए, ताकि भविष्य में कोई भी शासकीय सेवक नियमों को तोड़ने का दुस्साहस न कर सके।
साथ ही समिति ने यह भी सवाल उठाया कि इतने लंबे समय तक 16 किस्तों का भुगतान होना दर्शाता है कि निगरानी एजेंसियां या तो लापरवाह हैं या फिर जानबूझकर आंखें मूंदे बैठी हैं। अध्यक्ष ने कहा कि यदि समय रहते जांच होती, तो यह अवैध लाभ रोका जा सकता था। उन्होंने मांग की कि इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए और योजना की मॉनिटरिंग करने वाले अधिकारियों की जवाबदेही भी तय की जाए।
अब जरूरत है कि इस पूरे प्रकरण में सिर्फ राशि की वसूली कर औपचारिकता पूरी न की जाए, बल्कि लाभ लेने वाले शिक्षक पर कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई भी सुनिश्चित की जाए। शासकीय सेवा में रहते हुए नियमों का उल्लंघन, गलत जानकारी देकर आर्थिक लाभ लेना गंभीर कदाचार की श्रेणी में आता है। ऐसे में विभागीय जांच, वेतन से वसूली और सेवा नियमों के तहत दंडात्मक कार्रवाई अनिवार्य होनी चाहिए।
यह प्रकरण केवल एक व्यक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे सिस्टम के लिए चेतावनी है। यदि ऐसे मामलों पर सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो योजनाओं की विश्वसनीयता पर सवाल उठते रहेंगे और वास्तविक जरूरतमंद किसान अपने हक से वंचित होते रहेंगे। अब देखना यह है कि प्रशासन इस खुले उल्लंघन और संभावित घोटाले पर कब तक ठोस कार्रवाई करता है।