कलेक्टर की परीक्षा: प्रेमनगर तहसील में केवल कर्मचारी या संरक्षणदाता भी होंगे कटघरे में ?


चन्द्र प्रकाश शाहू 

सुरजपुर। सूरजपुर जिले में एंटी करप्शन ब्यूरो की लगातार कार्रवाइयों के बावजूद राजस्व विभाग की जमी-जमाई भ्रष्ट व्यवस्था जस की तस बनी हुई है। बाबू, ऑपरेटर और पटवारी रिश्वत लेते पकड़े जा रहे हैं, लेकिन व्यवस्था सुधारने के बजाय अफसरों का संरक्षण भ्रष्टाचार को और मजबूत कर रहा है। यही वजह है कि आम किसान आज भी अपने ही कागज दुरुस्त कराने के लिए अपमान और शोषण झेलने को मजबूर है।


प्रेमनगर तहसील की हालत तो और भी बदतर बताई जा रही है। यहां तहसील कार्यालय से लेकर हल्का स्तर तक बिना रिश्वत कोई काम आगे नहीं बढ़ता। बंटवारा, फौती, ऋण पुस्तिका और सीमांकन के लिए दरें तय हैं, लेकिन निर्धारित शुल्क चुकाने के बाद भी फाइलें महीनों तक धूल खाती रहती हैं। लगातार शिकायतों के बावजूद किसी जिम्मेदार पर कार्रवाई न होना इस बात की ओर इशारा करता है कि भ्रष्ट कर्मचारियों को ऊपर से खुला संरक्षण प्राप्त है।


सूत्रों के अनुसार प्रेमनगर तहसील में एनआईसी ऑपरेटर, कानूनगो और स्थापना शाखा के जिम्मेदार वर्षों से एक ही जगह जमे हुए हैं और इन सभी पर तहसीलदार की मेहरबानी बनी हुई है। चर्चा है कि पूरी व्यवस्था एक “कमीशन सिस्टम” पर चल रही है, जिसमें नीचे से ऊपर तक हिस्सा बंधा होता है। यही कारण है कि शिकायतें आते ही दबा दी जाती हैं और पीड़ित को ही चक्कर काटने पड़ते हैं।


इसी भ्रष्ट तंत्र का ताजा उदाहरण ग्राम बकिरमा के वृद्ध ग्रामीण सेवक राम का मामला है। सेवक राम ने कलेक्टर को दी लिखित शिकायत में आरोप लगाया है कि पटवारी पवन साय ने ऑनलाइन B-1 सुधार के नाम पर उनसे 5,000 रुपये की मांग की। मजबूरी में उन्होंने 4,000 रुपये दे भी दिए, लेकिन पैसा लेने के बाद भी पटवारी ने काम नहीं किया।


सेवक राम के अनुसार उनके खाते में कुल 14 प्लॉट दर्ज हैं, लेकिन ऑनलाइन रिकॉर्ड में केवल 11 प्लॉट दिख रहे हैं। वर्ष 2013-14 के हस्तलिखित B-1 में सभी प्लॉट साफ दर्ज हैं, इसके बावजूद महीनों से सुधार नहीं किया गया। पटवारी ने कभी “सर्वर डाउन” तो कभी “कल आओ” कहकर वृद्ध किसान को बार-बार अपमानित किया। इसका सीधा असर यह हुआ कि सेवक राम न तो ऋण पुस्तिका अपडेट करा पा रहे हैं और न ही कृषि व सरकारी योजनाओं का लाभ ले पा रहे हैं।


ग्राम बकिरमा और कोट्या हल्का के ग्रामीणों का कहना है कि यह कोई अकेला मामला नहीं है। पवन साय का यही रवैया लंबे समय से चला आ रहा है। किसानों के काम जानबूझकर लटकाए जाते हैं और अवैध वसूली की मांग की जाती है। ग्रामीणों का आरोप है कि यदि तहसीलदार का संरक्षण न होता, तो वर्षों से एक ही पटवारी पर लगते आरोप यूं ही अनदेखे नहीं किए जाते।

अब यह मामला सिर्फ एक पटवारी की रिश्वतखोरी तक सीमित नहीं रहा। सवाल सीधे तहसीलदार की भूमिका पर खड़े हो गए हैं। क्या बिना उनकी जानकारी तहसील में रिश्वत का पूरा तंत्र चल सकता है? क्या शिकायतों पर कार्रवाई न होना प्रशासनिक लापरवाही नहीं, बल्कि जानबूझकर दिया गया संरक्षण है!


सेवक राम ने मांग की है कि उनके सभी छूटे हुए प्लॉट तत्काल ऑनलाइन दर्ज किए जाएं और दोषियों पर सख्त कार्रवाई हो। वहीं क्षेत्रवासियों का कहना है कि यदि इस मामले में तहसीलदार की जवाबदेही तय नहीं हुई, तो यह साफ हो जाएगा कि भ्रष्टाचार केवल नीचे नहीं, बल्कि ऊपर तक सुरक्षित है। अब जिले की जनता कलेक्टर की ओर देख रही है। संरक्षण देने वालों पर भी कार्रवाई होगी !